नई दिल्ली । जहां एक ओर भारत में कई राजनीतिक पार्टियां और संगठन रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में आ गए हैं, वहीं देश की मीडिया को लेकर भी कई तरह के कटाक्ष किये जा रहे हैं। इस सब के बीच रोहिंग्या मुसलमानों से जुड़ी एक खबर म्यांमार से है। असल में म्यांमार में सेना की तरफ से रोहिंग्या शरणार्थियों पर हो रही हिंसा की रिपोर्टिंग के दौरान एक न्यूज एजेंसी के दो पत्रकारों पिछले कुछ महीनों से जेल में बंद हैं। रॉयटर्स के 2 पत्रकार वा लोन और क्याव सोय को पिछले दिसंबर में कुछ गुप्त दस्तावेज निकालने का प्रयास करने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। ये दस्तावेज रोहिंग्या से जुडे़ थे। इस मामले में इन दोनों को अब 7 साल जेल की सजा सुनाई गई है। हालांकि इस मामले में सोमवार को संयुक्त राष्ट्र ने हस्तक्षेप किया है। UN ने दोनों ही पत्रकारों को जल्द से जल्द छोड़ने की मांग की है ।
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पुलिसवालों ने सौंपे थे गोपनीय दस्तावेज
बता दें कि म्यांमार में पत्रकारों की गिरफ्तारी का मामला अब एक बार फिर से उठ गया है। संयुक्त राष्ट्र ने इस ममले में हस्तक्षेप करते हुए म्यांमार सरकार से दोनों को छोड़ने के लिए कहा है। असल में गत वर्ष 12 दिसंबर को दो पत्रकारों ने म्यांमार पुलिस के दो कर्माचारियों से कुछ दस्तावेज लिए थे। ये दस्तावेज काफाी गोपनीय थे। सरकार ने दोनों ही पत्रकारों को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत दोषी पाया, जिन्हें अब 7 साल जेल की सजा सुनाई गई है।
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दोनों ही पत्रकार पिछले दिसंबर से जेल में बंद हैं। इन्हें जमानत नहीं दी गई है। जांच एजेंसी का कहना है कि अभी इस मामले की जांच जारी है, जिसके चलते अभी दोनों को जमानत नहीं दी गई है। हालांकि दोनों पत्रकारों में से एक वा लोन का कहना है कि जब हमने कोई गैरकानूनी काम किया ही नहीं है तो हम क्यों डरें।
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