नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि जब पति-पत्नी के बीचे रिश्ते सुधरने की जरा भी गुंजाइश न रह जाए तो दोनों की आपसी सहमति से तुंरत तलाक की इजाजत दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामले में आपसी सहमति से दी गई अर्जी के बाद छह महीने की कूलिग ऑफ पीरियड की अनिवार्यता को खत्म किया जा सकता है। न्यायमूर्ति आर्दश कुमार गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड की कानूनी बाध्यता को हटाते हुए कहा कि उद्देश्य विहीन शादी को लंबा खिंचने और दोनों पक्षों की पीड़ा बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।
यह भी पढ़े- रेयान के मालिकों की अग्रिम जमानत का विरोध करेंगे प्रद्युम्न के पिता , बॉम्बे हाईकोर्ट में सुन...
हालांकि वैवाहिक संबंध को बरकार रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए लेकिन जब दोनों पक्षों पर इसका कोई असर न हो तो उन्हें नया जीवन शुरू करने का विकल्प देना ही बेहतर होगा। पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा बी(2) में वर्णित छह महीने की कूलिंग ऑफ पीरियड अनिवार्य नहीं है बल्कि यह एक निर्देशिका है। ऐसे मामलों के साक्ष्य और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए अदालत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि अदालत को यह भी लगना चाहिए दोनों पक्षों के बीच सुलह के बिल्कुल आसार नहीं है।
यह भी पढ़े- आईएस के गिरफ्त से छुड़ाए गए फादर टॉम, सुषमा स्वराज ने दी जानकारी
सुप्रीम कोर्ट मे इसके लिए कुछ शर्तें निर्धारित की है किस तरह आपसी सहमति पर तलाक की अर्जी दायर करने के एक बफ्ते बाद कूलिंग ऑफ पीरियड को खत्म करने का आवेदन दाखिल किया जा सकता है। नियम के मुताबिक, पति पत्नी आपसी सहमति से तलाक की अर्जी तब दाखिल कर सकते हैं, जब वे एक वर्ष से अलग रह रहे हों। पीठ ने कहा, कि एक वर्ष बाद तलाक की अर्जी दी जाती है और इसके बाद सुलह के सभी प्रयास विफल रह जाते हैं तो दोनों पक्ष बच्चों की कस्टडी, निर्वाह वहन आदि मामला सुलक्ष चुका हो तो तलाक में देरी का कोई कारण नहीं है।