नई दिल्ली । अभिनेता पंकज कपूर की फिल्म 'चला मुसद्दी ऑफिस-ऑफिस' याद है न। वही फिल्म जो भ्रष्ट्राचार पर वार करते उनके धारावाहिक ऑफिस-ऑफिस की कहानी को लेकर बनाई गई थी। फिल्म में पंकज कपूर को पेंशन विभाग के लोग मृत घोषित कर देते हैं, जिसके चलते उन्हें अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं। भले ही ये कहानी एक सिनेमा के पर्दे की हो, लेकिन असल जिंदगी में अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए एक मशहूर बुजुर्ग शायर भी मुसद्दी की तरह दिल्ली के समाज कल्याण विभाग के दफ्तरों में खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
जवानी के दिनों में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से पुरस्कार प्राप्त करने वाले शायर असरार जमई अब 80 वर्षीय बुजुर्ग हो चुके हैं। लंबे समय तक अपने शायरों से महफिलों में जान फूंक देने वाले असरार लंबे समय से यह साबित करने में लगे हैं कि उनके अंदर भी जान है, वह मृत नहीं हैं। असल में सरकारी दस्तावेजों में असरार जमई को मृत घोषित कर दिया गया है। इस आधार पर दिल्ली के समाज कल्याण विभाग ने उनकी पेंशन बंद कर दी।
अब उनकी कहानी फिल्म 'चला मुसद्दी ऑफिस-ऑफिस' के मुसद्दी लाल की तरह हो है जो अपने जीवित होने का सबूत संबंधित अधिकारियों को देते-देते थक गए हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से वह इसी बात को साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। खुद पूर्व राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त इस बुजुर्ग शायर का कहना है कि अधिकारियों को मैं यह बताते हुए थक गया हूं कि मैं जिंदा हूं लेकिन अफसर करते हैं हम सब बातों को समझ तो रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते।
80 वर्षीय इस बुजुर्ग को 1500 रुपये पेंशन मिलती थी जो सरकारी दस्तावेजों में उन्हें मृत घोषित किए जाने के बाद बंद कर दी गई है। खुद को सरकारी दस्तावेजों में जिंदा साबित करने के लिए वह पूर्व की शीला दीक्षित सरकार के साथ-साथ केजरीवाल सरकार में भी अफसरों से मिलते रहे हैं लेकिन कोई हल नहीं निकला।
बहरहाल, अब यह मामला दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के पास पहुंचा है। खुद सिसोदिया ने इस मामले को देखने के बाद कहा कि मैंने समाज कल्याण और उर्दू अकादमी को कहा है कि वह 48 घंटे के भीतर असरार जमई की पेंशन से संबंधि विवाद को खत्म करें।