Saturday, April 27, 2024

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खुशखबरी - अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने अपनी थैरेपी से कोरोना को 99.9 फीसदी तक खत्म करने का किया दावा

अंग्वाल न्यूज डेस्क
खुशखबरी - अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने अपनी थैरेपी से कोरोना को 99.9 फीसदी तक खत्म करने का किया दावा

नई दिल्ली । भारत सरकार ने कोरोना काल में इलाज की गाइडलाइन को एक बार फिर से बदल दिया है, जिसमें से प्लाज्मा थैरेपी को कोरोना ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से हटा दिया गया है । वहीं इस महामाही में इलाज के लिए अब कई नई तकनीकें सामने आ रही हैं , जिसमें जहां डीआरडीओ ने अपनी दवा 2DG को लॉंच किया है , वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिकों ने एक ऐसी थेरेपी विकसित की है, जो 99.9% COVID-19 पार्टिकल्स को मारने में सक्षम है । विदेशी मीडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक , वैज्ञानिकों का दावा है कि ऑस्ट्रेलिया के मेन्जीस हेल्थ इंस्टीट्यूट क्वींसलैंड के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने इस थेरेपी को विकसित किया है । यह तकनीक एक मिसाइल की तरह काम करती है, जो पहले अपने टारगेट को डिटेक्ट करती है फिर उसे नष्ट कर देती है । इसकी मदद से मरने वालों की संख्या को कम किया जा सकता है ।

वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी मदद से दवा को ‘नैनोपार्टिकल' नामक किसी चीज़ में इंजेक्शन के माध्यम से रक्तप्रवाह में पहुंचाया जाता है । यह नैनोपार्टिकल फेफड़ों में जाते हैं और RNA डिलीवर करने वाली कोशिकाओं में मिल जाते हैं । इसके बाद RNA वायरस की तलाश करता है और उसके जीनोम को नष्ट कर देता है। 

असल में ‘डेली मेल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह नेक्स्ट-जनरेशन टेक्नोलॉजी एक ‘हीट-सीकिंग मिसाइल’ की तरह काम करती है । यह पहले COVID पार्टिकल्स की पहचान करती है और उसके बाद उन पर हमला बोल देती है । शोध में शामिल प्रोफेसर निगेल मैकमिलन (Nigel McMillan) ने कहा कि यह अभूतपूर्व ट्रीटमेंट वायरस को प्रतिकृति बनाने से रोकता है और इसकी मदद से कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है । 


शोध के अनुसार , यह एक खोजो और नष्ट करो मिशन है , जिसकी मदद से किसी व्यक्ति के फेफडों में मौजूद वायरस को डिटेक्ट करके उसे नष्ट कर सकते हैं । रिपोर्ट में मैकमिलन के हवाले से लिखा गया है कि यह थेरेपी जीन-साइलेंसिंग (Gene-Silencing) नामक चिकित्सा तकनीक पर आधारित है, जिसे पहली बार 1990 के दशक के दौरान ऑस्ट्रेलिया में खोजा गया था ।  श्वसन रोग (Respiratory Disease) पर हमला करने के लिए जीन-साइलेंसिंग RNA का उपयोग करती है। 

उन्होंने बताया कि यह एक ऐसी तकनीक है जो RNA के छोटे टुकड़ों के साथ काम करती है, जो विशेष रूप से वायरस के जीनोम से जुड़ सकती है । यह बाइंडिंग जीनोम को आगे काम नहीं करने देती और आखिरकार उसे नष्ट कर देती है । 

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