नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार से कहा है कि वह एक बार उम्रकैद के दोषियों की समय पूर्व रिहाई की नीति पर विचार करे । कोर्ट ने 2021 की नई नीति में समय पूर्व रिहाई के लिए कैदियों की आयु न्यूनतम 60 वर्ष होने के प्रावधान पर ऐतराज जताया है । कोर्ट का कहना है कि यह नीति पहली नजर में टिकाऊ नहीं नजर आ रही है । इस दौरान जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने नीति की वैधता पर 'बड़ा संदेह' व्यक्त किया है । इतना ही नहीं पीठ ने यूपी सरकार को इस नीति पर चार महीने में जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है ।
वैधता पर बड़ा संदेह
इस दौरान पीठ ने कहा कि हम समय पूर्व रिहाई के आवेदन के लिए 60 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित करने वाले इस खंड की वैधता पर बड़ा संदेह व्यक्त करना चाहते हैं । पीठ ने कहा - इस शर्त का अर्थ है कि उम्रकैद की सजा पाए 20 साल के युवा अपराधी को समय पूर्व रिहाई का आवेदन करने के लिए 40 साल सलाखों के पीछे बिताने होंगे । हम चाहते हैं कि नीति के इस हिस्से की राज्य सरकार फिर से परीक्षण करें ।
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की प्रतिक्रिया
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने माता प्रसाद द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई की । इस याचिका के अनुसार , 26 जनवरी, 2020 को उसके अनुरोध को मंज़ूरी मिलने के बावजूद उसे जेल से रिहा नहीं किया गया । उसे वर्ष 2004 में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और 17 साल से अधिक सजा काटने के बाद उसे जेल से रिहा नहीं किया गया । राज्य सरकार ने इस पर दलील दी थी कि 28 जुलाई, 2021 को समय से पहले रिहाई की नीति में संशोधन किया गया था । याचिकाकर्ता के मामले में लागू होने वाला महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि ऐसे सभी दोषियों के आवेदनों पर विचार के लिए 60 वर्ष की आयु और बिना छूट के 20 वर्ष एवं छूट के साथ 25 वर्ष की हिरासत में होना अनिवार्य है ।
अपील हाईकोर्ट में लंबित
राज्य सरकार का कहना था कि वर्ष 2018 की नीति के तहत याचिकाकर्ता का मामला कवर किया जाएगा, हालांकि 2021 की नीति के अनुसार वह 60 वर्ष की अपेक्षित आयु का नहीं है । कोर्ट ने कहा - याचिकाकर्ता की अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है, वहां याचिकाकर्ता सजा के निलंबन के लिए आवेदन कर सकता है । लेकिन शीर्ष अदालत ने सक्षम अथॉरिटी को तीन महीने की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता के आवेदन पर फैसला लेने का निर्देश दिया । पीठ ने राज्य सरकार की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि 2021 की नीति को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है । पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता बिना किसी छूट के लगभग 22 वर्ष और छूट के साथ लगभग 28 वर्ष जेल में बिता चुका है । उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया ।