देहरादून। उत्तराखंड में राष्ट्रपति और शैलेश मटियानी पुरस्कारों से सम्मानित शिक्षकों ने सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाया है। इन शिक्षकों का कहना है कि उत्तरप्रदेश के समय में उन्हें जो भी सुविधाएं मिल रहीं थीं वह सभी उत्तराखंड राज्य बनने के बाद मिलने बंद हो गए हैं। पुरस्कारों से सम्मानित शिक्षकों ने कई बार राज्य सरकार से इसकी शिकायत की लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद शिक्षकों ने सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जताई है। दूसरी ओर राज्यपाल पुरस्कार में चयनित देहरादून जिले के शिक्षक के नाम पर प्राथमिक शिक्षक संघ ने आपत्ति जताई है। शिक्षक संगठन ने इसे लेकर राज्यपाल को भी पत्र भेजा है, जिसमें मानकों के विपरीत चयन की शिकायत की गई है। संघ का तर्क है कि जिस शिक्षक को अवार्ड के लिए चयनित किया गया है, उन्हें मौजूदा स्कूल में सिर्फ एक ही साल हुआ है और पहले के स्कूल को कम छात्र संख्या के चलते बंद करना पड़ा था।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति और राज्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले शिक्षकों को राज्य में 2 साल का अतिरिक्त सेवा विस्तार मिलता है लेकिन मौजूदा सरकार में उन्हें न तो इंक्रीमेंट का फायदा मिल रहा है और न ही पेंशन प्रभावित हो रहा है। दूसरी ओर शिक्षक दिवस के मौके पर गवर्नर्स अवार्ड से सम्मानित किए जाने वाले शिक्षकों के नाम पर प्राथमिक शिक्षक संघ ने आपत्ति जताई है। शिक्षक संघ का कहना है कि शिक्षकांे के चयन में मानकों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया है। इसके लिए उन्होंने राज्यपाल को भी पत्र लिखकर सूचित किया है।
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यहां बता दें कि प्रधाचार्य प्रदीप डबराल का कहना है कि राष्ट्रपति और शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित शिक्षकों को तत्काल एक विशेष इंक्रीमेंट मिलता है। इसके बाद सेवा विस्तार की अवधि में भी उन्हें इंक्रीमेंट और विशेष लाभ दिया जाता है। यहां तक की यूपी में रोडवेज की बस में रियायती सफर की सुविधा भी उपलब्ध भी है लेकिन राज्य में 2 साल के सेवाविस्तार का कोई फायदा नहीं मिल रहा है।