देहरादून। राज्य में शिक्षा की व्यवस्था को सुधारने में विभागीय लापरवाही की मामला सामने आया है। शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से मदद में कोई कमी नहीं की जा रही है। सर्वशिक्षा अभियान के तहत केन्द्र से करोड़ों रुपये का अनुदान दिया। ये पैसे या तो बैंक में जमा रहे या फिर ग्राम विकास समिति के खातों में। ब्लॉक और संकुल संसाधन व्यक्ति (बीआरपी-सीआरपी) की नियुक्ति में जानबूझकर की गई देरी की वजह से भी करोड़ों रुपये इस्तेमाल ही नहीं हो पाए। नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
अधिकारियों का सुस्त रवैया
गौरतलब है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था की हालत किसी से छिपी नहीं है। इसमें सुधार लाने के लिए उत्तराखंड सरकार को केन्द्र से सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत वर्ष 2010-11 से 2015-16 तक की अवधि तक करोड़ों रुपये की मदद दी लेकिन विभागीय अधिकारियों के सुस्त रवैये के चलते इसका उपयोग नहीं हुआ। कैग ने अपनी रिपोर्ट में नाराजगी जताते हुए साफ लिखा है कि एसएसए के जिम्मेदार अधिकारियों का आंतरिक नियंत्रण बेहद कमजोर रहा है। अब राष्ट्रीय स्तर पर एसएसए के सर्वेक्षण में पाई गई कमियों पर कैग ने सभी राज्यों से उनका पक्ष मांगा है।
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विभाग पर सवाल
आपको बता दें कि कैग की रिपोर्ट के बाद एसएसए के आॅफिसर सही तरीके से स्पष्टीकरण नहीं दे रहे हैं। कुछ समय पहले उपसचिव-शिक्षा दिनेश चंद्र जोशी ने तत्काल रिपोर्ट भेजने के निर्देश देते हुए पत्र भी भेजा है। यहां गौर करने वाली बात है कि कैग ने राज्य में चलने वाले अवैध स्कूलों को लेकर भी शिक्षा विभाग के रवैये पर सवाल खड़े किए हैं।