पिथौरागढ़।
उत्तराखंड के दूर दराज इलाके में आज भी स्वास्थ्य सेवा की हालत खस्ता है। इन इलाकों में विशेषज्ञों की तैनाती तो बहुत दूर झोला छाप डाॅक्टरों की संख्या भी नहीं के बराबर है। इसका खामियाजा यहां के मरीजों को उठाना पड़ता है। ऐसे में बिहार के रहने वाले एक डाॅक्टर कुंदन कुमार ऐसे भी हैं जो मैदानी इलाके की सुख सुविधा को छोड़कर दूर दराज पहाड़ी इलाके में अपनी सेवा देने की ठानी। फिहहाल वे पिथौरागढ़ की सबसे बड़ी तहसील गंगोलीहाट के सीएचसी में तैनात हैं।
नहीं है तय मानकों के हिसाब से डाॅक्टर
आपको बता दें कि डाॅक्टर कुंदन का ताल्लुक उत्तराखंड से नहीं है। वे मूल रूप से उनका ताल्लुक बिहार के बेगूसराय जिले से है। वे साल 2005 से पिथौरागढ़ की गंगोलीहाट तहसील में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यहां बता दें कि तहसील के क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से तय मानकों के अनुसार 9 चिकित्सक होने चाहिए। इसके लिए गंगोलीहाट में सीएचसी भी खोली गई है, जिसमें चिकित्सकों के नौ पद स्वीकृत हैं लेकिन यहां प्रभारी के अलावा कभी भी दो या तीन से अधिक चिकित्सक तैनात नहीं रहे।
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एक दशक हो गए सेवा देते हुए
गौरतलब है कि साल 2005 में गंगोलीहाट तहसील के सर्वाधिक दुर्गम स्थल चैरपाल में संविदा पर डॉ. कुंदन की तैनाती हुई थी। पहली बार जब वह पैदल चलकर बीहड़ माने जाने वाले चौरपाल पहुंचे तो वहां की स्थिति देख उन्हें काफी दुख हुआ और उन्होंने ठान लिया कि अब वे यहीं अपनी सेवाएं देंगे। 2 साल बाद डॉ. कुंदन लोक सेवा आयोग के अधीन आ गए और उन्हें अल्मोड़ा जिले के ग्रामीण क्षेत्र में तैनाती मिली। लेकिन उनका मन तो गंगोलीहाट के लोगों की परेशानियों के साथ जुड़ चुका था। ऐसे में उन्होंने विभाग एवं शासन से सेवा के लिए फिर वहीं भेजने का अनुरोध किया।
रात को भी पीछे नहीं हटते
डाॅक्टर कुंदन पिछले 12 सालों से गंगोलीहाट क्षेत्र में ही सेवाएं दे रहे हैं। यूं तो वह सरकारी चिकित्सक हैं, लेकिन दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों से फोन आने पर बिना विलंब किए कई किमी पैदल चलकर रोगी का इलाज करने पहुंच जाते हैं। इतना ही नहीं, महिला चिकित्सक न होने के कारण गंगोलीहाट के गांवों में जाकर वह प्रसव तक कराते हैं। कई बार तो स्थिति ऐसी हो गई कि वे रात के अंधेरे में रास्ता भटक गए। ऐसे में रास्ते से वापस लौटने के बजाय वे रास्ता खोजकर मरीजों के घर पहुंच जाते हैं।
मजबूर ग्रामीणों की मदद
दूर-दराज पहाड़ी इलाकों में सेवा देने वाले डाॅक्टर कुंदन का कहना है कि घरवालों द्वार नौकरी छोड़कर बिहार में ही प्रैक्टिस करने की बात भी ठुकरा चुके हैं। उनका कहना है कि मैदानी इलाकों में लोगों को अस्पताल और डाॅक्टर मिल जाते हैं लेकिन इन इलाकों न तो अस्पताल हैं और न चिकित्सक ही। इसलिए मैं पूरी उम्र ऐसे ही इलाकों में अपनी सेवाएं देता रहुंगा।