Monday, May 6, 2024

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वन विभाग की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे ग्रामीण, जंगलों की हरियाली कागजों तक सिमटी 

अंग्वाल न्यूज डेस्क
वन विभाग की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे ग्रामीण, जंगलों की हरियाली कागजों तक सिमटी 

देहरादून। राज्य को हरा-भरा बनाने की कोशिशें तो काफी समय से की जा रही हैं लेकिन यह अमल में आती नहीं दिख रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन न होना है। वर्षाकाल के दौरान जितने पौधे लगाए जाते हैं उनमें से आधे भी पनप नहीं पाते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो कागजों पर जंगल उगने के बजाय जमीन पर इसका असर दिखता।  

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर

गौरतलब है कि राज्य में जंगलों की कमी का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो शासन व वन विभाग को एक कार्ययोजना तैयार कर इलाके की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप पौधे का रोपण करना चाहिए। साथ ही कम से कम 10 साल तक इनकी देखभाल सुनिश्चित करनी होगी इसके बाद ही कुछ सकारात्मक नतीजे सामने आ पाएंगे।

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देखभाल का अभाव

आपको बता दें कि राज्य में हर साल तकरीबन दो करोड़ पौधे लगाए जाते हैं लेकिन इनमें से कितने बड़े हो पाते हैं इसका रिकाॅर्ड विभाग के पास भी नहीं है। ऐसी स्थिति तब है जबकि वन क्षेत्रों में रोपित पौधों की तीन साल तक देखभाल का नियम बना हुआ है। बावजूद इसके न तो महकमा खुद पौधों को बचा पा रहा और न ग्रामीणों को इसके लिए प्रेरित कर पा रहा। हर साल, बस किसी तरह लक्ष्य पूरा करने और बजट को खर्च करने की होड़ सी नजर आती है।

वन विभाग की दलील

वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भूक्षरण, जंगलों में आग लगने और अवैध कटान की वजह से पौधे पूरी तरह से पनप नहीं पाते हैं। जानकारों की मानें तो यहां ये आंकड़ा 50 से 60 फीसद तक है और कहीं-कहीं तो 70 फीसद पौधे उगे ही नहीं हैं। ऐसे में विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजमी है।  दरअसल, पौधरोपण के कार्यक्रम में सबसे बड़ी खामी है योजना की। यहां परिस्थितियों के अनुकूल पौधे नहीं लगाए जाते हैं। लाखों पौधों के पनपने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही है। पर्यावरण के जानकारों का मानना है कि यहां विभागों की सोच और कार्यशैली बदलने की जरूरत है इसके बाद ही जंगलों का सही मायनों में विकास हो पाएगा। 


ये हैं तथ्य

-53683 वर्ग किमी है उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल।

-37999.6 वर्ग किलोमीटर है वनों का क्षेत्रफल।

-2.35 लाख घन मीटर प्रतिवर्ष औसतन प्रकाष्ठ का उत्पादन।

-10 हजार हेक्टेयर वन भूमि है अतिक्रमण की जद में।

-1619 मामले औसतन हर साल आते पकड़ में।

-106.96 लाख पौधे इस साल लगाने का रखा गया है लक्ष्य।

 

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