नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने पिछली सरकार द्वारा बनाई गई सेवा नियमितीकरण नियमावली-2016 को निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति सुधांशू धुलिया की एकलपीठ ने कहा कि सीधी भर्ती वाले पदों को संविदा या फिर अस्थाई तरीके से भरने के बजाय उसे नियमित किया जाए। बता दें कि हरीश रावत सरकार ने 30 नवंबर, 2016 में दैनिक वेतनभोगी, कार्यप्रभारित, संविदा, नियत वेतन, अंशकालिक, तदर्थ रूप से नियुक्त कार्मिकों के विनियमितीकरण (संशोधन) नियमावली को हरी झंडी दी थी। इसके तहत इस श्रेणी के कर्मचारी जिन्हें लगातार 5 साल काम करते हो चुके हैं, उन्हें पक्का किया जाना था। इससे पहले भाजपा के सीएम बीसी खंडूड़ी ने सबसे पहले इस नियमावली को तैयार किया था लेकिन तब नियमित होने की अवधि 10 साल तय की गई थी।
गौरतलब है कि हल्द्वानी के रहने वाले हिमांशु जोशी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड सरकार ने साल 2016 में सेवा नियमितिकरण नियमावली लाई थी लेकिन यह नियमावली उमा देवी मामले में आए निर्णय के खिलाफ है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि सरकार 2013 में भी नियमितीकरण सेवा नियमावली लाई थी ऐसे में वह दोबारा नियमितीकरण की नियमावली नहीं ला सकती है।
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यहां बता दें कि इस याचिका पर सुनावई करने के बाद न्यायमूर्ति सुधांशू धुलिया की एकलपीठ ने सरकार की 2016 की सेवा नियमितीकरण नियमावली निरस्त कर दी। कोर्ट ने सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि संविदा और अस्थाई पदों को नियमित किया जाए। वहीं सरकार को थोड़ी राहत देते हुए कहा कि वह चाहे तो पहले से भर्ती लोगों को इस मामले में वरीयता दे सकती है और उन्हें आनुपातिक अथवा नियमों के क्रम में आयु में भी छूट दी जा सकती है।
कोर्ट ने साफ किया है कि इस फैसले से 2013 की नियमितीकरण नियमावली प्रभावित नहीं होगी। इसका लाभ पा चुके कर्मचारियों पर ताजा फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा।