नैनीताल। केदारनाथ आपदा के बाद क्षतिग्रस्त हुई बिजली-पानी की लाइनों की मरम्मत अब तक नहीं हो पाई है। हां, इसके नाम पर फर्जी बिल लगाकर करोड़ों रुपये का घोटाला जरूर किया गया। अब हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए मुख्य सचिव को इसमें शामिल सभी अधिकारियों के खिलाफ एक महीने के अंदर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। बता दें कि अधिवक्ता सुशील वशिष्ठ ने जनहित याचिका दायर की थी जिसकी सुनवाई के बाद कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है।
गौरतलब है कि अधिवक्ता सुशील वशिष्ठ ने अपनी याचिका में कहा था कि साल 2013 में आई भीषण आपदा के दौरान केदारनाथ में पानी और बिजली की लाइनें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी। इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा अभिकरण (उरेडा) को दिया गया था और इसके लिए उसे 30 करोड़ का ठेका दिया गया था। उरेडा द्वारा पुरानी लाइनों को पूरी तरह आपदा में बही हुई दिखाकर गोलमाल किया गया। रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट में इस मामले में गोलमाल की पुष्टि हुई है।
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यहां बता दें कि जिलाधिकारी की रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि सरकार व उरेडा के अफसरों की मिलीभगत से पुरानी लाइनों को बहा हुआ दिखाकर नई लाइनों के बिल पास कर दिए गए। डीएम की इस रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं हुई तो उसके बाद जनहित याचिका दायर की गई। अब वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद मुख्य सचिव को इस घोटाले में शामिल अफसरों के खिलाफ एक महीने के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
गौर करने वाली बात है कि याचिका में उरेडा चेयरमैन, जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग, अपर सचिव, निदेशक उरेडा, मुख्य परियोजना अधिकारी, उप मुख्य परियोजना अधिकारी व वरिष्ठ परियोजना अधिकारी उरेडा को पक्षकार बनाया गया है।