नई दिल्ली/ देहरादून । उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोकगायक और संगीतकार हीरा सिंह राणा का शनिवार सुबह हार्ट अटैक के चलते निधन हो गया । मौजूदा समय में वह दिल्ली में गठित कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष भी थे । 77 वर्षीय हीरा सिंह राणा को हिरदा कुमाऊनी के नाम से पुकारा जाता था । कैसेट संगीत के युग में हीरा सिंह राणा के कुमाउनी लोक गीतों के अल्बम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे ज़माना जबर्दस्त हिट रहे । उनके लोकगीत ‘रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी,’ कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में शुमार हैं । उनके देहांत की खबर फैलते ही उत्तराखंड समाज में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। उनकी अंतिम यात्रा आज सुबह निगमबोध घाट पर हुआ ।
हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ. उनकी माता स्व: नारंगी देवी, पिता स्व: मोहन सिंह थे । अपनी प्राथमिक शिक्षा मानिला से ही हासिल करने के बाद वे दिल्ली मैं नौकरी करने लगे । नौकरी में मन नहीं रमा तो संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंचे और आजन्म कुमाऊनी संगीत की सेवा करते रहे । वे 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाने लगे थे ।
राणा ने ऐसे गाने बनाये जो उत्तराखण्ड की संस्कृति और रिती रीवाज को बखुबी दर्शाते हैं। यही वजह कि भूमंडलीकरण के इस दौर में हीरा सिंह राणा के गीत खूब गाए बजाए जाते हैं।
बता दें कि हीरा सिंह राणा को उनके ठेठ पहाड़ी विम्बों-प्रतीकों वाले गीतों के लिए जाना जाता है । वे लम्बे समय से अस्वस्थ होने के बावजूद कुमाऊनी लोकसंगीत की बेहतरी के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे ।