देहरादून। राज्य में मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना(एमएसबीवाई) के लाखों कार्ड बेकार हो गए हैं। चिकित्सा विभाग का कहना है कि जो अपात्र हो गए थे उन कार्डों को ही निष्क्रिय किया गया है जबकि कुछ लोगों का कहना है कि इसमें ऐसे लोगों के कार्ड भी शामिल थे जो बीपीएल और लााभार्थी थे। जब वे अस्पताल पहंचे तो उन्हें पता चला कि उनका कार्ड मान्य नहीं है। आपको बता दें कि कांग्रेस सरकार ने 1 अप्रैल 2015 को राज्य में मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की थी और लाभार्थियों को बायोमेट्रिक स्मार्ट कार्ड जारी किए थे।
गरीबों के इलाज की लिए शुरू हुई योजना
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत लाभार्थियों को 50 हजार रुपये तक के इलाज का कवर मिलता है और सवा लाख रुपये गंभीर बीमारियों का बीमा कवर मिलता है। इस कार्ड का इस्तेमाल एमएसबीवाई के पैनल में शामिल किसी भी अस्पताल में इलाज के लिए किया जा सकता है। यहां बता दें कि एमएसबीवाई के तहत सरकारी कर्मचारी, पेंशनर और आयकर दाता शामिल नहीं हैं। विभिन्न कारणों से अब करीब तीन लाख परिवार एमएसबीवाई से बाहर कर दिए गए हैं।
पात्रों के कार्ड भी हुए निष्क्रिय
आपको बता दें कि राज्य सरकार ने इसके डाटा इकट्ठा करने और कार्ड बनाने का काम एक निजी कंपनी को सौंपा था। लाभार्थियों को वितरण के लिए कार्ड स्वास्थ्य विभाग को भेजे गए थे, जबकि कुछ मामलों में कार्ड यूं ही जारी कर दिए गए। स्वास्थ्य विभाग में इन लाभार्थियों का कोई रिकॉर्ड तक नहीं था। इन कार्डों से जुड़े कामों को पिछले साल अक्टूबर में नई बीमा कंपनी ने संभाला और उसने कार्ड को निष्क्रिय कर दिया। कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनमें एक ही पंजीकरण संख्या पर एक से अधिक कार्ड जारी कर दिए गए या एक ही परिवार के सदस्यों को एक से अधिक कार्ड जारी किए गए। कंपनी ने जिन कार्डों को निष्क्रिय किया गया उनमें से कई पात्र लोगों के भी कार्ड थे जब वे अपना इलाज करने के लिए दून मेडिकल काॅलेज पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनका कार्ड मान्य नहीं है।
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विशेष अभियान चलाया जाएगा
एमएसबीवाई के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. एचसीएस मार्तोलिया का कहना है कि केवल अपात्र लोगों के कार्ड निष्क्रिय किए गए हैं। अगर कोई पात्र व्यक्ति योजना से बाहर हुआ है तो एक अगस्त से शुरू होने वाले विशेष अभियान के तहत उसे दोबारा शामिल कर लिया जाएगा।
पिछली सरकार की जल्दबाजी का भुगत रहे खामियाजा
पिछली सरकार ने चुनाव से ठीक पहले एमएसबीवाई का दायरा बढ़ाने में जल्दबाजी दिखाई। प्रशिक्षित व पेशेवरों के बजाय आशाओं और एएनएम को लाभार्थियों के सत्यापन का काम दिया। जिसका खामियाजा अब सैकड़ों परिवार भुगत रहे हैं।