Friday, April 26, 2024

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चंपावत : देवीधुरा में ऐतिहासिक 'नाशपति युद्ध ' में 122 लोग घायल , धूमधाम से मां बाराही के मंदिर प्रांगण में मना बग्वाल

अंग्वाल संवाददाता
चंपावत : देवीधुरा में ऐतिहासिक

चंपावत । रक्षाबंधन के दिन चंपावत जिले के देवीधुरा स्थित माँ बाराही के मंदिर प्रांगण में खेले जाने वाला ऐतिहासिक बग्वाल शुक्रवार को समाप्त हो गया।  खोलीखाड़ दुर्बाचौड़ मैदान में खेली गई ऐतिहासिक बग्वाल के जहां करीब 50 हजार लोग साक्षी बने , वहीं करीब दस मिनट तक चले बग्वाल के फल- फूल से बग्वाल खेलने के बावजूद नाशपति युद्ध में 122 लोग घायल हुए। इन्हें प्राथमिक उपचार के छुट्टी दे दी गई । परंपरानुसार चार खामों में 7 तोकों के बीच ये बग्वाल खेली गई । प्राचीन युद्ध को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग देवीधुरा पहुंचे । इस ऐतिहासिक बगवाल को देखने के लिए पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और सांसद अजय टम्टा, विधायक पूरन सिंह फर्त्याल, राम सिंह कैंडा भी शामिल थे । 

 

असल में रक्षाबन्धन के दिन देवीधुरा में माँ बाराही के मंदिर प्रांगण में खेली जाने वाली बग्वाल ऐतिहासिक है । मां वाराही धाम में रक्षाबंधन के दिन स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर युद्ध करते हैं । इन चार दलों को खाम कहा जाता है । पहले के समय में इस युद्ध में दोनों ओर से पत्थर फेंके जाते थे । असल में पहले मां बाराही को नरबलि दी जाती थी , उसके विकल्प के रूप में चारों खामों ने आपसी सहमति से यह बग्वाल की परंपरा शुरु की थी । इसमें जब किसी इंसान की बलि जितना रक्त निकल जाता था, उसके बाद इस युद्ध को रोक दिया जाता था । अब क्योंकि इस इलाके में नाशपाती भरपूर मात्रा में होती है तो अब लोग पत्थर की जगह नाशपति एक दूसरे को मारकर युद्ध खेलते हैं। 

 


मां वाराही मंदिर के पुजारियों के अनुसार इस साल बग्वाल खेलने के लिए नौ क्विंटल नाशपाती का प्रयोग किया गया । बग्वाल में कोई अनहोनी न हो जाए इसके लिए बग्वाल क्षेत्र के बाहर चार जगहों पर डॉक्टरों की टीम तैनात की गई थी । 

इस मेले को देखने आए लोगों की संख्या इस कदर थी कि देवीधुरा की सड़कों में पांव रखने को जगह नहीं थी। पुलिस ने करीब दो किमी पहले ही वाहन रोक दिए थे। जिले समेत आसपास के जिलों की पुलिस लगाई गई थी। मेला कमेटी के मुख्य संरक्षक लक्ष्मण सिंह लमगडिय़ा ने दावा किया कि इस बार करीब 50 हजार लोगों ने बग्वाल देखी। मेले का संचालन भुवन चंद्र जोशी ने किया।

देवीधुरा का बग्वाल यहां के लोगों की धार्मिक मान्यता का पवित्र रूप है। किंवदंती है कि एक वृद्धा के पौत्र का जीवन बचाने के लिए यहां के चारों खामों की विभिन्न जातियों के लोग आपस में युद्ध कर एक मानव के रक्त के बराबर खून बहाते हैं। क्षेत्र में रहने वाली विभिन्न जातियों में से चार प्रमुख खामों चम्याल, वालिक, गहरवाल और लमगडिय़ा के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा अर्चना कर एक दूसरे को बगवाल का निमंत्रण देते हैं।

 बग्वाल में भाग लेने के लिए रणबांकुरों को विशेष तैयारियां करनी होती हैं। बग्वाल लाठी और रिंगाल की बनी ढालों से खेली जाती है। स्वयं को बचाकर दूसरे दल की ओर से फेंके गए फल, फूल या पत्थर को फिर से दूसरी ओर फेंकना ही बग्वाल कहलाता है।ः

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