देहरादून। पर्यावरण संरक्षण की सोच और देवभूमि को हरा-भरा करने का जज्बा रामचंद्र वीरवानी को उत्तराखंड खींच लाया। यहां से ताल्लुक नहीं रखने के बावजूद रामचंद्र ने यहां पर्यावरण की रक्षा के लिए न सिर्फ पेड़ लगाए बल्कि कई खाल और चैकडैम भी बनवाए। राज्यसभा के निदेशक पद से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए रामचंद्र वीरवानी यह काम ठेके पर देने या किसी के जरिए कराने के बजाय खुद मजदूरों से करवाते हैं। उत्तराखंड की एक संस्था के बुलावे पर आए रामचंद्र वीरवानी ने प्रदेश के कई इलाकों को हरा-भरा बना दिया। उनका यह प्रयास राज्य सरकार और प्रदेश के लोगों के लिए के मिसाल है।
पर्यावरण संरक्षण का काम
गौरतलब है कि रामचंद्र वीरवानी मूल रूप से दिल्ली के द्वारका इलाके के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि देश ने उन्हें बड़ा पद, नाम और पेंशन की सुविधा दी है। ऐसे में सेवानिवृत्ति के बाद उनकी भी जिम्मेदारी है कि समाज को कुछ वापस किया जाए। पर्यावरण से लगाव उन्हें उत्तराखंड खींच लाया। रामचंद आज राज्य के दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में दिनभर मजदूरों के साथ खड़े होकर अपने खर्च से चाल-खाल (खाव) और चेकडैम बनाने जैसा चुनौतीपूर्ण कार्य कर रहे हैं। पहाड़ों से सीधा संबंध न होने के बावजूद दिल्ली से आकर जल, जंगल और जमीन को बचाने की ऐसी पहल पर्यावरण संरक्षण को लेकर उनके गहरे लगाव को ही दर्शाता है।
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पानी की कमी को दूर करने के लिए चाल-खाल
आपको बता दें कि वीरवानी द्वारहाट के नट्टागुल्ली, बिठोली, दूनागिरी, कांडे और नागार्जुन में अपने खर्च पर अब तक करीब 50 खाल और कुछ चेकडैम बनवाए हैं। वे किसी संस्था और व्यक्ति को धनराशि देने के बजाय अपने हाथ से सीधे मजदूरों को भुगतान करते हैं। वे जहां कहीं भी खाली जमीन देखते हैं उसे हरा-भरा बनाने में जुट जाते हैं लेकिन वहां पानी की कमी के चलते ठीक से पेड़ों की देखभाल न होने के बाद उन्होंने चाल-खाल बनवाने का निर्णय लिया। द्वारहाट के अलावा ऋषिकेश और गंगोलीहाट में भी कुछ खाल बनवाए। उत्तराखंड के अलावा मध्यप्रदेश की फोकनार की पहाड़ी और बालाघाट में भी उन्होंने पौधरोपण किया और खाल बनवाए।