देहरादून। राज्य में फर्जी दस्तावेजों के जरिए बैंक से लोन देने के आरोप में सीबीआई की विशेष अदालत ने विजया बैंक के 2 अधिकारियों सहित तीन लोगों को चार-चार सालों की कैद की सजा सुनाई है। इसके साथ बैंक अधिकारियों को 25-25 हजार रुपये और ऋण लेने वाले को 20 हजार रुपये का आर्थिक दंड भी भुगतना पड़ेगा।
विजया बैंक ने दिया लोन
गौरतलब है कि एसके गुप्ता नाम के व्यक्ति ने सेलाकुई में इंडस्ट्री लगाने के लिए देहरादून स्थित विजया बैंक की शाखा में एक करोड़ 10 लाख रुपये के लोन का आवेदन किया था। उस वक्त के शाखा प्रबंधक शिवाजी साही (वर्तमान में मुख्य प्रबंधक दिल्ली रीजन) ने लोन पास कर स्वीकृति के लिए फाइल तत्कालीन एजीएम चंडीगढ़ वाईडी मिश्र को भेजा दी। साल 2007 में एसके गुप्ता को लोन मिल गया।
सीबीआई की जांच में दस्तावेज फर्जी
आपको बता दें कि एसके गुप्ता ने लोन लेने के लिए बैंक के अधिकारियों से मिलीभगत कर जमीन रजिस्ट्री, फर्जी पैन कार्ड डिटेल के साथ ही फर्जी फर्म खोलकर उसमें मशीन सप्लाई के फर्जी दस्तावेज बैंक में जमा कराए। वहीं मौके पर बैंक को दिखावे के लिए कबाड़ मशीनें लगाई गईं। लोन देने के बाद जब बैंक को घपले का शक हुआ तो इसकी शिकायत सीबीआई से की गई।
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विशेष अदालत ने सुनाई सजा
गौरतलब है कि 8 जून 2009 को सीबीआई ने इसकी प्राथमिकी दर्ज कराई गई। सीबीआई ने जब इस मामले की जांच शुरू की तो सभी दस्तावेज फर्जी पाए गए। इसके बाद 24 अगस्त 2010 को तीनों अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई। सीबीआई की विशेष अदालत की जज शादाब बानो ने बैंक अधिकारियों वाईडी मिश्र, शिवाजी साही और ऋण आवेदक एसके गुप्ता को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई।