नई दिल्ली । देश में ऐसे समय में जब लोकसभा चुनावों को लेकर सियासत गर्म है, एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें देश में 2016 में हुई नोटबंदी के बाद से अब तक 50 लाख लोगों की नौकरियां जाने का आंकड़ा सामने आया है । रिपोर्ट में सामने आया है कि नौकरियां जाने वाले अधिकांश लोग देश के असंगठित क्षेत्र में काम करते थे। असल में बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (CSE) ने यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी किया, जिसे ‘State of Working India 2019' शीर्षक दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार , भारत में बेरोजगार ज्यादातर उच्च शिक्षित और युवा हैं। शहरी महिलाओं में कामगार 10 फीसदी ही ग्रेजुएट्स हैं, जबकि 34 फीसदी बेरोजगार हैं। वहीं, शहरी पुरुषों में 13.5 फीसदी ग्रेजुएट्स हैं, मगर 60 फीसदी बेरोजगार हैं।
बता दें कि सीएसई के अध्यक्ष और रिपोर्ट लिखने वाले मुख्य लेखक प्रोफेसर अमित बसोले ने हफिंगटनपोस्ट से कहा कि, इस रिपोर्ट में कुल आंकड़े हैं। इनके हिसाब से नोटबंदी के बाद से देश में 50 लाख रोजगार कम हुए हैं, कुछ क्षेत्रों में भले ही नौकरियां बढ़ी हों लेकिन 50 लाख लोगों ने अपना नौकरियां खोई हैं। यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। बसोले ने आगे बताया कि कि डेटा के अनुसार, नौकरियों में गिरावट नोटबंदी के आसपास हुई (सितंबर और दिसंबर 2016 के बीच चार महीने की अवधि में) और दिसंबर 2018 में अपने स्थिरांक पर पहुंची।
'2016 के बाद भारत में रोजगार' वाले शीर्षक के इस रिपोर्ट में एक जगह नोटबंदी के बाद जाने वाली 50 लाख नौकरियों का जिक्र है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 के बाद से कुल बेरोजगारी दर में भारी उछाल आया है। 2018 में जहां बेरोजगारी दर 6 फीसदी थी. यह 2000-2011 के मुकाबले दोगुनी है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा किए जाने के आसपास ही नौकरी की कमी शुरू हुई, लेकिन उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इन दोनों के बीच संबंध पूरी तरह से स्थापित नहीं किया जा सकता है। 'सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्लॉयमेंट' की ओर से जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी नौकरी खोने वाले इन 50 लाख पुरुषों में शहरी और ग्रामीण इलाकों के कम शिक्षित पुरुषों की संख्या अधिक है। इस आधार पर रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि नोटबंदी ने सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र को ही तबाह किया है।