वाराणसी । बहुचर्चित ज्ञानवापी मस्जिद मामले में वाराणसी के जिला जल की कोर्ट में सोमवार को शुरू हुई कोर्ट की कार्यवाही अब पूरी हो गई है । वाराणसी कोर्ट ने फै़सला कल तक के लिए सुरक्षित रखा है। कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ताओं समेत मात्र 23 लोग ही अंदर जा सके । हालांकि इस दौरान पूर्व कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को कोर्ट के अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई । कोर्ट कर्मचारियों ने कहा है केवल उन्हें ही इजाजत दी जाएगी जिनका नाम वकालतनामे में होगा । ज्ञानवापी मामले में जिला जज में 23 लोगों में 5 में से 4 याचिकाकर्ता कोर्ट रूम में हैं. इनमें लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठ मौजूद रहे ।
कोर्ट रूम में मौजूद लोगों की लिस्ट
कोर्ट रूम के अंदर लोगों में लक्ष्मी, सीता साहू , मंजू व्यास, रेखा पाठक, मोहम्मद तौदीद, अभय यादव मुस्लिम पक्ष के वकील, मेराज फारूकी, मुमताज अहमद, हिन्दू पक्ष के वकील मदन मोहन, रइस अहमद, हिन्दू पक्ष सुधीर त्रिपाठी, वरिष्ठ वकील मान बहादूर सिंह, विष्णु जैन, सुभाष चतुर्वेदी, सरकारी वकील महेंद्र प्रसाद पांडेय मौजूद रहे ।
अब से कुछ देर बाद शुरू होगी सुनवाई
ज्ञानवापी मामले को लेकर वाराणसी जिला जज की अदालत में अब से कुछ देर में सुनवाई शुरू होगी । ऐसे में पक्ष के वकील और मुस्लिम पक्ष के वकील के अधिवक्ता कोर्ट पहुंच चुके हैं । जानकारी के मुताबिक, पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे मामले में प्लेसेज ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 नहीं लागू होता ।
सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है । अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर कर मांग की है कि उनका पक्ष भी सुना जाए । उन्होंने कहा है कि ये मामला सीधे तौर पर उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है । सदियों से वहां भगवान आदि विशेश्वर की पूजा होती रही है. ये सम्पत्ति हमेशा से उनकी रही है । किसी सूरत में सम्पत्ति से उनका अधिकार नहीं छीना जा सकता । एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के बाद मन्दिर के कुछ हिस्सों को ध्वस्त करने और यहां तक कि नमाज पढ़ने से भी मन्दिर का धार्मिक स्वरूप नहीं बदलता, जब तक कि विसर्जन की प्रकिया द्वारा मूर्तियों को वहां से शिफ्ट न किया जाए । उन्होंने अपनी याचिका में यह भी दलील दी कि इस्लामिक सिद्धान्तों के मुताबिक भी मन्दिर तोड़कर बनाई गई कोई मस्जिद वैध मस्जिद नहीं है । 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप को निर्धारित करने से नहीं रोकता । उन्होंने अपनी याचिका में मस्जिद कमेटी की याचिका को खारिज करने की मांग की है ।