नई दिल्ली । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के दो हजार के नोट को लेकर जारी फरमान के बाद इस मुद्दे पर बहस जारी है । इसी क्रम में बिना पहचान पत्र दिखाए 2 हज़ार का नोट बदलने की सुविधा के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई करने से मना कर दिया है । कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच ने कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है , जिसपर तत्काल सुनवाई की जाए । याचिकाकर्ता गर्मी की छुट्टी के बाद चीफ जस्टिस से सुनवाई का अनुरोध करे । विदित हो कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस याचिका को खारिज कर दिया था । जबकि याचिकाकर्ता का कहना है कि इस व्यवस्था से देश विरोधी ताकतों को फायदा होगा ।
नोट बदलने वालों की पहचान पुख्ता हो
इस मामले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की दलील है कि नोट बदलने वाले की पहचान पुख्ता किए बिना उसे बदलने से भ्रष्ट और देश विरोधी तत्वों को फायदा हो रहा है । असल में गत दिनों दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे नीतिगत विषय बताते हुए याचिका ठुकरा दी थी । सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धुलिया और के वी विश्वनाथन की बेंच के सामने अपनी याचिका रखते हुए उपाध्याय ने दलील दी कि रिज़र्व बैंक का फैसला मनमाना है । उसे मंजूरी देकर हाई कोर्ट ने गलत किया है. लेकिन जजों ने उपाध्याय की अपील पर तुरंत सुनवाई से मना कर दिया ।
3 लाख करोड़ से ज्यादा के नोट
अपनी याचिका में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि इस लापरवाही के चलते 3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रकम के 2 हजार के नोट कुछ देश विरोधी ताकतें आसानी से बदलवा लेंगी। उन्होंने इतनी बड़ी रकम देश में मौजूद भ्रष्टाचारियों, माफिया या देश विरोधी शक्तियों के पास होने की आशंका जताी । उनका कहना है कि ऐसी स्थिति में बिना किसी की पहचान किए बिना देखे नोट बदल देने से देशी विरोधी तत्वों को फायदा होगा । वह बोले - भारत में आज ऐसा कोई परिवार नहीं है, जिसके पास बैंक अकाउंट न हो । इसलिए, 2000 रुपए के नोट सीधे बैंक खातों में जमा होने चाहिए, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई व्यक्ति सिर्फ अपने खाते में ही नोट जमा करवा सके, किसी और के खाते में नहीं ।
RBI ने किया था याचिका का विरोध
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट में बहस के दौरान रिज़र्व बैंक ने याचिका का विरोध किया था। RBI की ओर से कोर्ट में पेश हुए अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने 1981 में आए 'आर के गर्ग बनाम भारत सरकार' मामले के फैसले का हवाला दिया । उनकी दलील थी कि वित्तीय और मौद्रिक नीति में कोर्ट दखल नहीं दे सकता। त्रिपाठी ने कहा था कि नोट जारी करना और उसे वापस लेना रिज़र्व बैंक का अधिकार है । इसमें कोर्ट को अपना दखल नहीं देना चाहिए ।