Friday, April 26, 2024

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LIVE - स्कूल - कॉलेजों में हिजाब पहनने पर फैसला थोड़ी देर में , सुप्रीम कोर्ट के जज सुनाएंगे अपना फैसला

अंग्वाल न्यूज डेस्क
LIVE - स्कूल - कॉलेजों में हिजाब पहनने पर फैसला थोड़ी देर में , सुप्रीम कोर्ट के जज सुनाएंगे अपना फैसला

नई दिल्ली । देश - दुनिया में महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने को लेकर घमासान मचा हुआ है । इस बीच भारत के स्कूल - कॉलेजों के साथ ही अन्य स्थानों में हिजाब पहनने को लेकर छेड़ा विवाद , अब सुप्रीम कोर्ट में है । देश की शीर्ष अदालत अब से थोड़ी देर बाद यानी 10.30 बजे इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगी ।  10 दिनों तक इस मुद्दे पर सुनवाई होने के बाद आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगी । हालांकि जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच इस मुद्दे पर एक राय नहीं है । इसके चलते इस मुद्दे पर दो फैसले आएंगे ।

कर्नाटक से शुरू हुआ था मुद्दा

बता दें कि यह मामला कर्नाटक के स्कूल-कॉलेज में ड्रेस कोड के पालन से जुड़ा है । इससे पहले मार्च 2022 में कर्नाटक की हाईकोर्ट ने ड्रेस कोड के पालन के आदेश को सही ठहराया था । कोर्ट ने ये भी कहा था कि, हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है जिसके बाद इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 24 याचिकाएं दाखिल हुई । राज्य सरकार की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता, कर्नाटक के एडवोकेट जनरल प्रभूलिंग के नवाडगी और एडीशनल सॉलीसीटर जनरल के.एम. नटराज ने बहस की थी ।

2022 में हिजाब को लेकर अभियान चलाया गया


राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि साल 2021 तक सभी छात्र यूनिफार्म का पालन कर रहे थी लेकिन 2022 में हिजाब को लेकर अभियान चलाया गया । इस अभियान के तहत मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहनकर स्कूल आना शुरू किया ।  इसके जवाब में हिंदू छात्र भगवा गमछा पहन कर आने लगे । सरकार ने स्कूलों में अनुशासन कायम करने के लिए यूनिफॉर्म के पालन का आदेश दिया । सरकार ने यह भी कहा कि यूनिफार्म शिक्षण संस्थान तय करते हैं, राज्य सरकार नहीं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है किसी भी कपड़े को पहनने पर राज्य सरकार ने रोक लगाई । 

याचिकाकर्ताओं का कहना है...

हिजाब का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकीलों ने बहस करते हुए कहा कि अगर हिजाब को एक धार्मिक फ़र्ज़ की तरह मानते हुए लड़कियां यूनिफॉर्म के रंग का स्कार्फ अपने सर पर रखती हैं तो इससे किसी भी दूसरे छात्र का कोई अधिकार प्रभावित नहीं होता । इसलिए, रोक लगाने का आदेश गलत है ।

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