नई दिल्ली। उत्तरपूर्वी राज्य असम नेशनल रजिस्टर सिटीजंस (एनआरसी) के बाद पहली कार्रवाई करते हुए भारत ने गुरुवार को 7 रोहिंग्या प्रवासियों को म्यांमार वापस भेजने का फैसला लिया है। इन सभी रोहिंग्या मुसलमानों को मणिपुर के रास्ते म्यांमार भेजा जाएगा। हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने इस पर अपना नाराजगी जताई है। बता दें कि बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान असम में रह रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि यह पहला मौका है जब भारत के द्वारा अवैध रूप से रहने वाले रोहिंग्या पर कार्रवाई की जा रही है।
गौरतलब है कि भारत के द्वारा की जाने वाली कार्रवाई पर संयुक्त राष्ट्र में नस्लवाद मामलों के विशेष दूत ने कहा है कि अगर भारत ऐसा करता है तो यह उसके अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्व से मुकरने जैसा होगा। भारतीय गृह मंत्रालय का कहना है कि 7 रोहिंग्या शरणार्थियों को गुरुवार को मणिपुर के रास्ते उन्हें म्यांमार के अधिकारियों को सौंप दिया जाएगा।
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यहां बता दें कि ये सभी रोहिंग्या 2012 से सिलचर के बंदी गृह में रह रहे थे। इन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया था। म्यांमार के राजनयिक ने भी इन सभी की पहचान कर ली है। इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों से रोहिंग्याओं की विस्तृत सूची मांगी गई है। बता दें कि सरकार पहले ही कह चुकी है कि अवैध रूप से रहने वाले सभी रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजा जाएगा।
गौर करने वाली बता है कि 7 रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजने के सरकार के फैसले के खिलाफ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को अर्जी दायर की है। उन्होंने इस मामले में अर्जी दायर कर सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की गुहार लगाई है। बड़ी बात ही कि कल ही मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने वकीलों को स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के मामलों पर पैरामीटर तैयार करने तक मामलों के तत्काल उल्लेख की अनुमति नहीं दी जाएगी।