लखनऊ। आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। मायावती राज में बने स्मारकों के घोटाले की केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) से जांच की मांग को लेकर गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका के मद्देनजर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से दर्ज एफआईआर की एक हफ्ते में प्रगति रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा है कि इस मामले में कोई भी दोषी बचना नहीं चाहिए। कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी।
गौरतलब है कि गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने मिर्जापुर के शशिकांत उर्फ भावेश पांडेय की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है। बता दें कि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में अंबेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल लखनऊ, मान्यवर कांसीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा अंबेडकर पार्क, रामबाई अंबेडकर मैदान स्मृति उपवन आदि के निर्माण में 14 अरब 10 करोड़ 83 लाख 43 हजार रुपये के घोटाले का आरोप लगाया गया है।
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यहां बता दें कि लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में भी इस घोटाले का जिक्र किया गया है। ऐसे में इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई थी। गौर करने वाली बात है कि फिलहाल एक दूसरे का दामन थामने वाले अखिलेश यादव सरकार ने ही इस घोटाले के खिलाफ गोमतीनगर थाने में मामला दर्ज कराया था। विजिलेंस विभाग भी इस मामले की जांच कर रहा है। बता दें कि इस मामले में यूपी निर्माण निगम, पीडब्ल्यूडी, नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी के इंजीनियर और अधिकारी आरोपी हैं।
गौर करने वाली बात है कि यूपी के विभिन्न जगहों पर स्मारक बनाने के लिए राजस्थान से पत्थरों से भरे 15 ट्रकों को रवाना किया गया था लेकिन इनमें से 7 ट्रक ही मौके पर पहुंचे थे और 8 ट्रकों के पत्थरों को बीच में ही गायब कर दिया गया। लोकायुक्त की जांच में इस मामले में करीब 1400 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था।
इसमें बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व मंत्री नसीरुद्दीन सिद्दीकी, पूर्व मंत्री बाबू राम कुशवाहा व 12 तत्कालीन विधायक इस मामले में आरोपी हैं। यही नहीं इस मामले में 100 से ज्यादा इंजीनियर और अन्य अधिकारी भी आरोपी बनाए गए हैं। इस केस में 2014 में सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी।