नई दिल्ली । गुजरात के 16 साल पुराने नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में शुक्रवार को गुजरात हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए बाबू बजरंगी को कोई राहत नहीं दी। कोर्ट ने उनकी अंतिम सांस तक सजा को बरकरार रखते हुए उन्हें किसी तरह की कोई राहत नहीं दी। वहीं कोर्ट ने माया कोडनानी को निर्दोष करार दिया है। नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में जस्टिस हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया की पीठ ने पिछले साल अगस्त में मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था। इससे पहले इस मामले में स्पेशल कोर्ट ने भाजपा नेता माया कोडनानी और बाबू बजरंगी समेत 32 आरोपियों को दोषी ठहराया था। बाद में इन लोगों ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसपर आज ये फैसला आया है।
क्या था मामला
असल में घटना 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां जलाने के बाद शुरू हुए दंगों से जुड़ी है। इस घटना के अगले ही दिन यानी 28 फरवरी 2002 में अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में बड़ा नरसंहार से जुड़ी है। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां जलाने की घटना के बाद अगले दिन जब गुजरात में दंगे भड़के तो नरोदा पाटिया सबसे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। यहां हुए दंगे में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 33 लोग जख्मी भी हुए थे।
कोडानी को मिली थी 28 साल की सजा
इस मामले में निचली अदालत ने आरोपियों में से एक माया कोडनानी को 28 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। लेकिन अब हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया है। वहीं बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास और सात अन्य को 21 साल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने उन्हें राहत नहीं दी और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। वहीं एक अन्य को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा हुई थी। निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था। जहां दोषियों ने निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, वहीं विशेष जांच दल ने 29 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।