नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट आपराधिक मामलों में आरोपी राजनीतिज्ञों के मामले में एक बार फिर सजग हुई है। शीर्ष अदालत ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए राजनीतिज्ञों से संबंधित जानकारी मांगी है। दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने वाले कानून को असंवैधानिक करार देने के लिए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर कोर्ट ने हस्तक्षेप किया। साथ ही अधिवक्ता से निचली अदालतों और हाईकोर्ट में नेताओं के खिलाफ लंबित मुकदमों का आंकड़ा मांगा है। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि क्या इनमें से किसी पर रोक लगी है।
असल में जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की दो सदस्यीय पीठ ने दोगी नेताओं की दर की जानकारी अधिवक्ता से मांगी है। कोर्ट ने कहा कि क्या इनके खिलाफ मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिए निर्देशों पर प्रभावी अमल हो रहा है। पीठ ने इस जानकारी के माध्यम से जानना चाहा कि राजनीतिकों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई एक साल के भीतर पूरी होती है तो क्या यह एक निर्णायक कदम होगा।
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि आप सजा होने के बाद 6 साल की रोक पर बहस कर रहे हो. लेकिन जब कोर्ट में केस 20-20 साल लंबित रहते है और इसी बीच आरोप चार साल का कार्यकाल पूरा कर लेते है तो उसके बाद अगर उन्हें 6 साल के लिए या आजीवन चुनाव लड़ने से मना भी कर दिया जाए तो इसका क्या मतलब है?
पीठ ने इस दौरान कहा कि हम देखना चाहते हैं कि आखिर इन राजनीतिकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में क्या इन नेताओं पर दोष सिद्ध हो भी पाता है या नहीं, अगर दोष सिद्ध नहीं हो पाता तो उसके क्या कारण हैं। पीठ ने दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने वाले कानून को असंवैधानिक करार देने वाली याचिका पर ये टिप्पणी की है।