नई दिल्ली । आतंकियों से लड़ते हुए शरीर पर 9 गोलियां खाने वाले और करीब डेढ़ महीने तक कोमा में रहने वाले सीआरपीएफ के एक कमांडर का जोश और जज्बा देखकर मौत भी घबरा गई। इस कमांडर ने अपने सीने पर कई गोलियां खाईं, कुछ गोलियां सिर में भी लगीं। हाथ-कंधे और सिर में कई फ्रैक्चर थे, एक आंख गंभीर रूप से चोटिल, ऐसे में डॉक्टरों ने अपना सारा ज्ञान झोंक दिया।
बहरहाल, अपने कभी हार न मानने के जज्बे की बदौलत कमांडर चेतन कुमार चीता इस सब से उभरकर बुधवार को एम्स से डिस्चार्ज हो रहे हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ एक मिशन के दौरान चीता जिस कदर घायल हुए थे, उसके बाद फिर से अपने पैरों पर खड़े होने को लोग कुदरद का करिश्मा ही कह रहे हैं। बुधवार को इस जांबाज को उनके घर भेज दिया गया ।
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चलिए आपको बताते हैं आखिर क्या है पूरा वाक्या। असल में 14 फरवरी 2017 को जम्मू-कश्मीर के बांदीपोर जिले के हाजिन इलाके कुछ आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली थी। इस पर सीआरपीएफ कमांडर चीता अपनी एक टीम के साथ वहां कार्रवाई करने पहुंचे लेकिन आतंकियों को सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बारे में पहले से ही जानकारी मिल गई थी। इस सब के बावजूद कमांडर की टीम ने एक आतंकी को ढेर कर दिया, लेकिन इस मिशन में उनके तीन जवान शहीद हो गए थे। इस पूरे ऑपरेशन में चीता भी आतंकियों की गोलियों का निशाना बने और बुरी तरह घायल हो गए।
हालांकि अच्छी खबर यह रही कि उनकी सांसें अभी चल रही थीं। इन्हें श्रीनगर के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वहां उनके बहते खून को रोकने के लिए प्राथमिक उपचार किया गया। हालांकि हालत बिगड़ने पर उन्हें एयरलिफ्ट करके एम्स के ट्रामा सेंटर में लाया गया।
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इनका इलाज करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि जिस हालत में उन्हें यहां लाया गया था वो बहुत डराने वाला था। उनके शरीर में 9 गोलियां लगी हुईं थी। कुछ गोलियां सिर में भी लगी थी। दाहिनी आंख फूट चुकी थी। शरीर का ऊपरी हिस्सा कई जगहों से फैक्चर था। हालत काफी खराब थी। डॉक्टरों की पूरी टीम ने उनके इलाज में अपना सारा ज्ञान झोंक दिया। करीब डेढ़ महीने तक वह कोमा में रहे लेकिन पिछले दिनों वह कोमा से बाहर आए और अब वो पूरी तरह स्वस्थ हैं। हालांकि उनकी एक आंख को तो ठीक कर दिया गया है लेकिन दाई आंख ठीक नहीं हो पाई। वहीं उनके मस्तिक के कुछ हिस्से को भी हटाया गया था।
बहरहाल, देश का यह 45 वर्षीय जांबाज कमांडर अब भले ही जंग के मैदान पर खुद न जा सके लेकिन अपने हौंसले की मिसाल पेश कर वह कई अन्य लोगों को देश सबसे पहले होने का मतलब समझाने के लिए एक रोल मॉडल बन सकेगा।
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