देहरादून। नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने देहरादून के मास्टरप्लान को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही इस प्लान को पास करने वाले अधिकारियांे पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया है। बता दें कि दून के ही रहने वाले एमसी घिल्डियाल के द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार ने बिना केंद्र की अनुमति के ही इसे लागू कर दिया है।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने एमसी घिल्डियाल की याचिका को जनहित याचिका में तब्दील करते हुए इस पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की बेंच ने इस पर सुनवाई करने के बाद राज्य सरकार द्वारा जारी दून के मास्टरप्लान को निरस्त करने के साथ ही उसे पास करने वाले अधिकारियों पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
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यहां बता दें कि हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि मास्टरप्लान के लिए केन्द्र सरकार से मंजूरी ली जानी थी लेकिन राज्य सरकार द्वारा बिना मंजूरी लिए ही महायोजना को लागू कर दिया। याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र सरकार ने मास्टरप्लान में दून के कुछ इलाकों को ईको सेंसिटिव जोन में रखा था। यहां किसी भी तरह का निर्माणकार्य शुरू करने से पहले केन्द्र सरकार ने अनुमति ली जानी जरूरी थी लेकिन राज्य सरकार ने बिना किसी अनुमति के ही देहरादून महानगर योजना लागू कर दी और प्राकृतिक जल की निकासी का कोई मानक नहीं रखा। इसके साथ ही दून के चायबागान को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया और करीब 124 एकड़ जमीन को खुर्द-बुर्द कर दिया गया।
गौर करने वाली बात है कि हाईकोर्ट द्वारा पूछे गए सवालों जवाब में राज्य सरकार ने कहा है कि महानगर योजना बनाते वक्त उन्होंने अनुमति लेने के लिए 16 सितंबर 2005 को केंद्र सरकार को पत्र भेजा था लेकिन केंद्र सरकार ने 3 साल तक अनुमति नहीं दी। इसके बाद साल 2008 और 2013 में सरकार ने महायोजना लागू कर दी। मामले को सुनने के बाद खंडपीठ ने महायोजना पास करने वाले अधिकारियों पर 5 लाख रुपये का अर्थ दंड लगाया है और देहरादून महायोजना 2005 को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही देहरादून के टी-स्टेट को पूर्व की तरह बनाने के आदेश दिए हैं। यह भी निर्देश दिए है कि मास्टर प्लान बनाते वक्त सभी चीजों का ध्यान रखा जाए।