नई दिल्ली । भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है । चीन न तो समझौतों की शर्तों को मान रहा है , न ही अपने रुख में कोई बदलाव ला रहा है । इस सबके बीच जबकि भारत और चीन के सैन्य स्तर से लेकर राजनीतिक स्तर के कई अफसर-नेताओं की बैठकों का दौर चलता रहता है, अमेरिका ने कहा है कि दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव अब बातचीत के नहीं खत्म होने वाला । अमेरिका (America) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) रॉबर्ट ओ ब्रायन ने कहा कि LAC पर ताकत के बल पर नियंत्रण करने की चीन की कोशिश उसकी विस्तारवादी आक्रामकता का हिस्सा है । अब यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि दोनों देशों के बीच जारी गतिरोध अब केवल बातचीत से खत्म नहीं होगा , क्योंकिन समझौते से चीन अपना आक्रामक रुख नहीं बदलने वाला ।
बता दें कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पर पिछले कुछ महीनों से चीन और भारत के बीच गतिरोध बरकरार है । आलम यह रहा कि इस गतिरोध के चलते दोनों देशों के जवानों के बीच हुई हिंसक झड़प में जहां भारत के 20 जवान शहीद हुए , वहीं चीन के करीब 45 जवान मारे गए । इसके बाद से दोनों देशों में तनाव बढ़ा है । दोनों पक्षों के बीच इस गतिरोध को सुलझाने के लिए उच्च स्तरीय राजनयिक और सैन्य वार्ताओं का दौर चल रहा है लेकिन अबतक इस समस्या का समाधान नहीं निकला है ।
इस सबके बीच अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वहा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए ) रॉबर्ट ओ ब्रायन (Robert O'Brien ) ने चीन पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘सीसीपी (चीन की कम्युनिस्ट पार्टी) का भारत के साथ लगती सीमा पर विस्तारवादी आक्रमकता स्पष्ट है जहां पर चीन ताकत के बल पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि चीन की विस्तारवादी आक्रामकता ताइवान जलडमरूमध्य में भी स्पष्ट है जहां धमकाने के लिए जनमुक्ति सेना की नौसेना और वायुसेना लगातार सैन्य अभ्यास कर रही है ।
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अमेरिकी एनएसए ने इस दौरान कहा कि 'बीजिंग के खास अंतरराष्ट्रीय विकास कार्यक्रम ‘वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) में शामिल कंपनियां गैर पारदर्शी और अस्थिर चीनी ऋण का भुगतान चीनी कंपनियों को कर रही हैं जो चीनी मजदूरों को आधारभूत संरचना के विकास कार्यक्रम में रोजगार दे रही हैं । कई परियोजनाएं गैर जरूरी हैं और गलत ढंग से बनायी गई और वे ‘सफेद हाथी’ हैं । अब ये देश चीनी ऋण पर आश्रित हो गए हैं और अपनी संप्रभुता को कमजोर किया है । इन देशों के पास अब कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है । वे संयुक्त राष्ट्र में मतदान या किसी मुद्दे पर पार्टी के रुख का साथ दे जिसे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अहम मानती है।
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