नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में सेना की कार्रवाई के दौरान बीच में आने वाले संगबाज यानी पत्थरबाजों का मुद्दा दिनों दिन गर्माता जा रहा है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें इनसे निपटने के लिए रणनीतियां बनाती दिख रही हैं। सुप्रीम कोर्ट इन लोगों पर पैलेट गन से कार्रवाई करने को जायज नहीं ठहराती। इस बीच मध्य प्रदेश के गुलेलबाजों ने दावा किया है कि वह घाटी के इन पत्थरबाजों को उन्हीं की भाषा में ऐसा सबक सिखा सकते हैं कि वह फिर सड़कों पर उतरने की हिम्मत नहीं करेंगे। इसके लिए इन गुलेलबाजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर कार्रवाई की अनुमति मांगी है।
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पिछले कुछ समय से भारतीय सेना और सरकार के लिए सिरदर्द बने ये संगबाज कई बार आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान सेना की कार्रवाई बाधित करते हैं, वहीं कई बार सेना की कार्रवाई के विरोध में। पिछले दिनों इनके खिलाफ पैलेट गन का इस्तेमाल किया गया था, जो मुद्दा कोर्ट में पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से पूछ लिया कि क्या आपके पास पैलेट गन के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सरकार इन पत्थरबाजों से निपटने के लिए रणनीति बना रही है।
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इस बीच मध्य प्रध्य के झाबुआ जिले के आदिवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है। गुलेलबाजी में महारथ रखने वाले इन लोगों का कहना है कि हम घाटी के इन पत्थरबाजों को उन्हीं की भाषा में सबक सिखा सकते हैं। इन लोगों का कहना है कि सेना की कार्रवाई में बाधा डालने वाले लोगों ने निपटने के लिए पारंपरिक हथियार गुलेल मददगार साबित होगी। असल में ये लोग इन पत्थरबाजों के आचरण और सेना पर हो रहे हमलों को लेकर आहत हैं। यही कारण है कि इन लोगों ने पीएम को एक पत्र लिख इन पत्थरबाजों से निपटने के लिए मौका मांगा है। इन लोगों का कहना है कि सेना के जवानों को इन लोगों के हाथों पत्थर से घायल होते देख हम लोगों को शर्म आती है। हम चाहते हैं कि हम इन संगबाजों को सबक सिखाएं।
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बता दें कि आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाले ये लोग गुलेलबाजी में महारथ हासिल किए हुए हैं। जहां इन लोगों का निशाना बहुत सटीक है, वहीं अपनी गुलेल से ये 100 मीटर तक वार कर सकते हैं। हालांकि इनका बार बहुत तेज भी होता है।