Tuesday, May 7, 2024

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राम मंदिर मामले में कोर्ट का ‘सुप्रीम’ फैसला, बड़ी बैंच को नहीं सौपा जाएगा मामला, 29 अक्तूबर से होगी सुनवाई

अंग्वाल न्यूज डेस्क
राम मंदिर मामले में कोर्ट का ‘सुप्रीम’ फैसला, बड़ी बैंच को नहीं सौपा जाएगा मामला, 29 अक्तूबर से होगी सुनवाई

नई दिल्ली। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक विवाद पर उच्चतम न्यायालय के 1994 के फैसले पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की मांग करने वाली मुस्लिम समूह की याचिकाओं पर गुरुवार को पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा  3 जजों की बेंच में से 2 जजों ने कहा कि इस मामले को 7 जजों की पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है। गौर करने वाली बात है कि इस मामले में तीसरे जज एस अब्दुल नजीर ने कहा कि ने कहा कि वे दोनों साथी जजों के फैसले से सहमत नहीं हैं। कोर्ट ने बड़ा निर्णय देते हुए कहा कि अयोध्या मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू कर दी जाएगी और 3 जजों की बेंच इसकी सुनवाई करेगा। बता दें कि मुस्लिम समूहों ने प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह दलील दी है कि इस फैसले में उच्चतम न्यायालय के अवलोकन पर 5 सदस्यीय पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि इसका बाबरी मस्जिद - राम मंदिर भूमि विवाद मामले पर असर पड़ेगा। 

गौरतलब है कि इस मामले में फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश अशोक भूषण ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में पिछले फैसले के संदर्भ को भी समझना होगा। जस्टिस अशोक भूषण ने अपनी टिप्पणी में कहा कि एक केस के अनुसार यह कहा गया था कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की कोई जरूरत नहीं है। 

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दरअसल, न्यायालय ने उस फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। गौर करने वाली बात है कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने 20 जुलाई को हुई सुनवाई को बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस फैसले का असर टाइटल सूट पर नहीं पड़ेगा। 

यहां बता दें कि 1994 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इस्माइल फारूकी केस में राम जन्मभूमि मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें। बेंच ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। गुुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इसे पुनर्विचार करने की कोई जरूरत नहीं है। 

 

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