नई दिल्ली । पिछले कई सालों से भारत के लिए आतंकवाद सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। पिछले दशक में अपने चरम पर पहुंच चुके आतंकवाद पर काबू पाने के लिए हाल की मोदी सरकार ने कई कठोस निर्णय जरूर लिए हैं, लेकिन उनका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त करने में मोदी सरकार को अभी पूरी तरह सफलता नहीं मिली है। हालांकि मोदी सरकार के दौरान की गई कार्रवाईयों को लेकर अब विदेशी मीडिया भी लिखने लगी है। अमेरिका के प्रमुख अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारतीय सेना की आतंकियों के मद्देनजर की गई कार्रवाई पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में लिखा है कि भारतीय जवानों के चलते कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है। यहां आतंकी घटनाओं में अब कमी देखी जा रही है और आतंकी संगठन भी घट गए हैं। इतना ही नहीं रिपोर्ट में लिखा गया है कि आतंकी बनने के बाद दहशतगर्द 2 साल से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाता।
पाक में बदलाव का असर घाटी में दिखेगा
न्यूयॉर्क टाइम्स ने ‘‘कश्मीर वॉर गेट्स स्मालर, डर्टियर एंड मोर इंटिमेट’ शीर्षक से प्रकाशित किए अपने लेख में उल्लेख किया है कि पाकिस्तान में हुए राजनीतिक बदलाव का असर कश्मीर पर जरूर पड़ेगा। यहां लड़ाई छोटी जरूर होगी, लेकिन खून-खराबा बढ़ने की आशंका भी रहेगी। फिलहाल कश्मीर घाटी में सेना के ढाई लाख से ज्यादा जवान, बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स और पुलिसकर्मी तैनात हैं।
आतंकी बनने के बाद 2 साल का जीवन काल
पिछले कुछ समय के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो घाटी में उभरकर सामने आने वाली आतंकियों का जीवनकाल मात्र 2 साल का रहा है। आतंकी बनने के 2 साल के भीतर भारतीय जवानों ने इन्हें मौत के घाट उतार दिया है। यही कारण है कि कभी हजार की संख्या में मौजूद खुंखार आतंकियों से भारतीय फौज ने घाटी को मुक्त कर दिया है। कश्मीर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर रफी बट को उसके आतंकी बनने के बाद 40 घंटे के अंदर मार गिराया गया।
सख्ती इतनी ही ट्रेनिंग मुश्किल
रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस समय घाटी में मौजूद 250 आतंकियों में से 50 विदेशी है, जबकि शेष 200 स्थानीय युवा है। इन लोगों ने तो पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग ले ली है, लेकिन पहले आतंकियों द्वारा घाटी में ही कुछ युवाओं को गोलियां चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थी लेकिन अब सख्ती इतनी है कि यह सब बंद हो गया है। अब नए जेहादियों को घाटी में किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है।
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सीमा पार करना आसान नहीं
सैन्य अधिकारियों के हवाले से इस लेख में कहा गया है कि ज्यादातर आतंकी ऑटोमैटिक हथियारों से मारे जा रहे हैं। फिलहाल 250 आतंकियों में 50 से ज्यादा पाकिस्तान से आए हैं। बाकी स्थानीय निवासी हैं, जिन्होंने अब तक घाटी नहीं छोड़ी। पुलिस की मानें तो 1990 के दौर में कश्मीरी युवा सीमा पार करके आसानी से पाकिस्तान चले जाते थे। अब ऐसा नहीं है। आतंकियों को अब गोलाबारी की ट्रेनिंग लेने की जगह भी नहीं मिल रही।
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भारत सरकार का दबाव काम आया
असल में मोदी सरकार का पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर बनाया गया दबाव का आ रहा है। भारत के दबाव में पाकिस्तान ने आतंकियों को पहले की तरह दी जाने वाली मदद में भारी कटौती कर दी है। हालांकि कई मौकों पर पाकिस्तानी फौज इन्हे घाटी में प्रवेश कराने की साजिश करते रहते हैं। लेकिन इस सब के बीच यह बात साफ हो गई है कि भारत सरकार का दबाव कारगर साबित हो रहा है।
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मात्र 250 आतंकी घाटी में
हाल में जारी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि एक समय हजारों आतंकियों की पनाहगाह बनी कश्मीर घाटी में एक हजार से ज्यादा विदेशी आतंकी प्रवेश कर चुके थे। लेकिन आज की तारीख में मात्र 250 आतंकी ही शेष रह गए हैं। इनमें कई वो हैं जिनकी नई भर्ती हुई है। भारतीय जवानों ने आतंकी संगठनों के कई बड़े नाम को मौत के घाट उतार दिया है।
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